कॉमेडी मेरे लिए एक नया क्षेत्र है” : मनोज बाजपेयी

 



ज़ी सिनेमा पर 28 फरवरी को रात 8 बजे होने जा रहे ‘सूरज पे मंगल भारी’ के वर्ल्ड टेलीविजन प्रीमियर के मद्देनजर मनोज बाजपेयी ने एक खास चर्चा की। यह कहानी उस वक्त शुरू होती है, जब सूरज अपने लिए दुल्हन ढूंढने निकलता है, लेकिन बड़े रहस्यमय तरीके से हर बार होने वाली दुल्हन के परिवार उसे ठुकरा कर देते हैं। जब उसे पता चलता है कि डिटेक्टिव मधु मंगल राणे की वजह से उसकी जिंदगी में हलचल मची हुई है, तो वो उसके खिलाफ योजना बनाने लगता है। यहीं से कुछ ऐसे पागलपन भरे घटनाक्रम शुरू होते हैं, जहां दोनों एक दूसरे की चालों को नाकाम करते हैं। सूरज और मंगल की इस गुदगुदाने वाली नोकझोंक को मनोज बाजपेयी और दिलजीत दोसांझ ने बखूबी प्रस्तुत किया है।


- आपने अलग-अलग जॉनर्स में बहुत-से रोल किए हैं। क्या दूसरे जॉनर्स की तुलना में कॉमेडी के जरिए दर्शकों से जुड़ना ज्यादा आसान है या मुश्किल?

 

मुझे हमेशा नए तरह के रोल्स की तलाश रही है और मधु मंगल राणे मेरे लिए बिल्कुल नया स्पेस था। मैंने कहानी को हमेशा सबसे ऊपर रखा है‌, लेकिन हर रोल की अपनी खूबियां और चुनौतियां होती हैं। हालांकि कॉमेडी मेरे लिए एक नया क्षेत्र है, लेकिन इस जॉनर को एक्सप्लोर करने में बहुत मजा आया। यदि आप मुझसे पूछेंगे कि ज्यादा मुश्किल क्या है, तो मैं कहूंगा किरदार में ढलना सबसे मुश्किल है। अंत में, दर्शकों से एक कनेक्शन बनाना बड़ा पेचीदा काम है, जिसमें आपको हर बात पर ध्यान देना होता है, चाहे वो कोई भी जॉनर हो। 


- इस फिल्म में आपका किरदार मधु मंगल राणे वेश बदलने में उस्ताद है। ऐसे में एक लुक से दूसरे लुक में आने का अनुभव कैसा रहा?

 

एक ही फिल्म में इतने सारे किरदार निभाना मेरे लिए एक बड़ा मौका था। इसमें सिर्फ मेरा हुलिया नहीं बदलता, बल्कि मुझे हर गेट-अप को विश्वसनीय तरीके से अपनाना होता था। जब आप इस तरह के रोल्स कर रहे हों, तो आपको बहुत सब्र की जरूरत होती है। ऐसे लुक में आने में घंटों लग जाते हैं। हालांकि ऑनस्क्रीन हुलिया बदलने में कॉस्टयूम और मेकअप महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन अंदर से तैयारी ही असली होती है। चाहे वो नववारी साड़ी पहनी महाराष्ट्रीयन औरत का किरदार हो या फिर जेम्स बॉन्ड स्टाइल जासूस का, जो बंदूक की जगह कैमरे का इस्तेमाल करता है, हर किरदार की अपनी एक दिलचस्प आदत है!


- दिलजीत और फातिमा के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा? 


दिलजीत और फातिमा के साथ काम करके बहुत मजा आया। फातिमा बड़ी विनम्र और मेहनती लड़की है। अपने किरदार के प्रति उनके समर्पण से मैं बहुत प्रभावित था। दिलजीत का भी स्थिति को समझने का अपना तरीका है। वो अपने दृश्यों में खुद की खूबियां जोड़ देते हैं। दोनों ही बहुत टैलेंटेड हैं और उनके साथ काम करना बड़ा मजेदार अनुभव था। सेट पर एक सकारात्मक माहौल था। इससे मुझे अपने काम में बहुत मजा आया और मुझे उसी उत्साह के साथ हर दिन काम पर लौटने का इंतजार रहता था। 


- यह फिल्म 90 के दशक की मुंबई पर आधारित है। 90 के दशक की कौन-सी बातें आपको अच्छे से याद हैं? 


90 का दशक बड़ा सादगी भरा दौर था। 90 के दशक के लोग पेन से ऑडियो कैसेट को घुमाने का संघर्ष खूब समझते हैं। उस समय की बहुत-सी यादें हैं जैसे पेजर, साधारण कार्ड गेम्स, लैंडलाइंस और बहुत कुछ। ‘सूरज पे मंगल भारी’ में मुझे उन पलों को दोबारा जीने का मौका मिला। मुझे यकीन है कि दर्शकों को भी उस दौर का अनुभव करते हुए बहुत अच्छा लगेगा।


- आप नए कलाकारों को क्या सलाह देना चाहेंगे, जो आपको अपना आदर्श मानते हैं? 


यह कि कभी हार ना मानें। यदि सफलता मिलती है, तो बहुत अच्छा और यदि नहीं मिलती है तो आपको अनुभव तो मिल ही गया! एक्टिंग में आपको हर तरह की चुनौती के लिए तैयार रहना जरूरी है। यदि आप में अपनी कला के प्रति लगन है और आप कड़ी मेहनत करने को तैयार हैं, तो सफलता आपका दरवाजा जरूर खटखटाएगी। दूसरी बात है, गौर करें और ज्यादा से ज्यादा गौर करें! आप जितने ध्यान से गौर करेंगे, उतना सीखेंगे। मैं सभी उभरते कलाकारों को भविष्य में सफलता की शुभकामनाएं देता हूं।

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